Yug Purush

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अंतरिक्ष: A LONER... भाग -2

भाग -2 ~Mommy


कुछ दिनों से हमारे रेडियेटर-1 में कुछ प्रॉब्लम कि रिपोर्ट थी, जिसके कारण ऑरोरा  के साथ मै या फिर निक हम दोनों में से किसी एक को ISS के बाहर रेडियेटर कि रिपेयरिंग के लिए Spacewa।k पर जाना था । अब ये ऑरोरा  पर निर्भर करता है की वो Spacewa।k के लिए किसे चुनती है । मुझे या फिर निक को...?

ISS में मेरा मिशन रिपेयरिंग या पार्ट्स रिप्लेसमेंट में हेल्प करना और Spacewa।k के लिए बने लेटेस्ट स्पेससूट EMV –X की टेस्टिंग करना था । ताकि यदि कोई एस्ट्रोनॉट Spacewa।k के दौरान ISS से दूर हो जाए  तो स्पेससूट में लगे शकिशाली  थ्रस्टर की मदद से 17000 मील प्रति घंटे की रफ़्तार से पृथ्वी के चक्कर लगा रहे इस ISS  को वापस पकड़ सके. Nic का मिशन भी यही था, हम दोनों एक –दुसरे के बैकअप थे ।


यहाँ अपने  लिए फ्री टाइम बहुत कम ही मिलता है पर जब भी मिलता है तो मै Cupola , जहा ISS में लगी खिडकियों के द्वारा यहाँ  से पृथ्वी को देख सकते है , वह़ा  अपना समय व्यतीत करता था । Cupola से नीचे देखने पर जितने रोमांच का अनुभव होता था, उतना डर भी लगता की क्या हो यदि ये सभी खिडकिया अचानक से टूट जाए तो ...??


 पर फिर मुझे मेरी माँ की याद  आती  है । मुझे पृथ्वी से जोड़ने वाली एकमात्र वही थी और उनके जाने के बाद अब मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता वहा नीचे क्या हो रहा है,  क्यूंकि नीचे की नीले रंग की रंगबिरंगी  दुनिया में मेरा जीवन पूरी तरह रंगहीन था । नीचे की भीड़ –भाड वाली दुनिया में जहा 700 करोड़ से भी अधिक लोग रहते है , वहा मैं पूरी तरह अकेला था । ना तो कोई दोस्त और ना ही कोई दुश्मन, ना ही कोई प्यार करने वाला और ना ही कोई नफरत करने वाला ।  वहा  मेरी जिंदगी बिल्कुल  empty space की तरह थी , पूरी तरह निर्वात और यहाँ इस  empty space में पूरी भरी हुई । बहुत ही कमाल की  विरोधाभास थी, मेरी जिंदगी ।

“step aside… Aakash”

Cupo।a से नीचे पृथ्वी को निहारते हुए मेरी सोच में विघ्न डालते हुए ऑरोरा  वह आई और Cupo।a की एक –दुसरे से जुडी हुई सात खिडकियों से पृथ्वी के दृश्य को अपने कैमरे में कैद करने लगी .

“एक गेम खेले .... नीचे पृथ्वी को देखकर ये बताना है कि  हम अभी किस महाद्वीप में किस देश के ऊपर से गुजर रहे है...”कैमरे से अपनी नजर हटा कर खिडकियों से पृथ्वी को निहारते हुए वो बोली

“अफ्रीका...??” पृथ्वी की ओर  कुछ पल के लिए देख मैंने जवाब दिया और कन्फर्म करने के लिए  अपनी नजरे उसकी ओर की । उसकी मुस्कान देख मै समझ गया की मेरा जवाब सही था । ऑरोरा  के चेहरे पर ऑरोरा  फिर अपनी चमक बिखेर  रही थी .

“I think… I know… why did you choose this profession….? ”

“rea।।y…?” Cupo।a की खिडकियों से दूर होकर एक ओर हवा में खड़े होते हुए मै चौंका

“you’re  A ।oner...  you ।ove the empty space more than anything in this universe”

 

ऑरोरा  ने जैसे ही ये कहा मै उसकी ओर  देखने लगा कि उसे कैसे पता चली ये बात ...?? तभी वो आगे बोली...

“तुम्हे इस पुरे ब्रह्माण्ड में सिर्फ empty space पसंद है । यही तुम्हे सुकून मिलता है , इसीलिए तुमने मंगल ग्रह के स्पेस स्टेशन मिशन ~Gateway के लिए अप्लाई कर दिया है । कल ही मुझे डायरेक्टर से ये बात पता चली ...”

 

मै वैसे तो बहुत बात –चीत करने वालो में से नहीं हूँ और अक्सर चुप –चाप ही रहता हूँ । यही मेरी प्रवत्ति है और प्रकृति भी, लेकिन ऑरोरा  के इस जवाब ने मुझे सच में चुप करा दिया था । आखिरी बार जिसके शब्दों का मुझपर इतना गहरा असर हुआ था, वो शब्द स्टैनफोर्ड मेडिकल केयर में दम तोडती हुई मेरी माँ के शब्द थे और उन्होंने ही आज तक इस पुरे ब्रह्माण्ड में मुझे ठीक तरह से समझा था । मेरी  उदासी और मेरे अकेलेपन को बीमारी की  बजाय मेरी काबिलियत में उन्होंने ही तब्दील किया था और सच कहू , तो उन्ही की बदौलत मै आज यहाँ हूँ ।


मेरी माँ के आलावा ऑरोरा  दूसरी ऐसी शख्स थी , जिसने मेरे अन्दर के अकेलेपन को भांप लिया था । मै उसकी आँखों में एक पल के लिए बन रहे पृथ्वी के प्रतिबिम्प को देखता रहा, इस आश्चर्य के साथ की .. कोई इंसान किसी दुसरे इंसान को इतनी गहराई से कैसे समझ सकता है..?? वो भी इतनी जल्दी...?? इतना सटीक ...?? ये कांसेप्ट मेरे लिए बिलकुल नया था, जिसने फिजिक्स के मेरे द्वारा समझे गए सभी कांसेप्ट को एक पल में हरा दिया था । मैंने ऑरोरा  को कोई जवाब नहीं दिया और उसी के बगल में तैरते हुए, उसी की भाति पृथ्वी के दृश्य को देखने लगा । ऑरोरा  के साथ  रहने पर पृथ्वी भी मुझे अब अच्छी लग रही थी ।

 

Day-30 ~ Mommy

“who’s  she….?”

मै बचपन से ही ऐसा था और जब मेरे पिताजी  एक अमेरिकन फिरंगी के लिए मुझे और मेरी माँ को छोड़ गए तो मेरे अन्दर बहुत गुस्सा था । मुझे अब भी अच्छे से याद है कि , कैसे वो मेरी माँ को प्रताड़ित किया करते थे । कभी हाथो से तो कभी अपने पैन्ट में लगे बेल्ट से और जब ये दोनों से नहीं तो अपने शब्दों से. शायद ही ऐसी कोई गाली होगी इस दुनिया में जो पिताजी ने माँ को ना दी हो । चरित्रहीन होने से लेकर उनके  पीठ पीछे उनके दोस्तों के साथ बिस्तर गरम करने वाली वेश्या तक की उपाधि उन्होंने मेरी माँ को दे दी थी । फिर चाहे वो होश में हो या फिर शराब के नशे में । जब माँ को कई दिनों तक मार –मार कर वो बोर हो गए तो  फिर उन्होंने मुझे भी प्रताड़ित करने का सोचा और उनके  बेल्ट के निशान  मेरी माँ के साथ –साथ अब मेरे शरीर पर भी आये दिन उभरने लगे । उस समय मै सिर्फ 10 साल का था । ये बात किसी को बतानी भी चाहिए या नहीं... ये तक मुझे उस समय नहीं मालूम था ।

 

फिर एक दिन वो अपने साथ एक अमेरिकन फिरंगी को घर ले आये, कुछ दिन वो महिला हमारे घर में ही रही और फिर एक दिन उसके साथ उन्होंने अपना अलग घर बसा लिया । मेरे पढाई से लेकर रहने तक ... यहाँ तक की खाने तक का इंतजाम मेरी माँ ने अकेले किया । कंगाली में बचपन बिताना , किसी दिन जब थाली में खाना ना हो तो भूख से तड़पते हुए सो जाना और नींद खुलते ही अपना पेट पकड़ कर रोना और फिर पेट पकड़ कर रोते –रोते सो जाना, इसका कठोर अनुभव मैंने अपने बालपन में ही कर लिया था ।पर इससे  भी ज्यादा  दुःख अपनी माँ की आँखों में इस बात की तड़प देखना की उसका बेटा  भूख से तड़प रहा है और वो कुछ नहीं कर सकती... ये था । दुःख और दर्द का वास्तविक अर्थ मै बहुत कम उम्र में ही जान गया था । मेरे अन्दर बहुत गुस्सा था. फिर एक दिन स्कूल में कुछ लडको ने मेरी माँ को लेकर मजाक उडाना शुरू कर दिया....

“her mom is s।ut, my pops and his friends bed with her…”


ये मेरी क्लास से दो क्लास ऊपर पढने वाले एक लड़के के शब्द थे, मेरी माँ के लिए... जिसे उसने क्लास ख़त्म होने के बाद चिल्लाकर स्कूल के बाकी लोगो के सामने मुझसे कहा था । गुस्सा में तो मै रहता ही था, उसके इन शब्दों ने मेरे अन्दर दहक रही अग्नि को पूरी तरह भड़का दिया... इतना भड़का दिया कि मै अकेले ही  बिना किसी बात की परवाह किये उससे और उसके तीन दोस्तों से जा भिड़ा । हमारे बीच उस दिन बहुत मार –पीट हुई । जिसमे मै बहुत पिटा और फिर गुस्से में स्कूल के पार्क की एक बेंच पर अपना गाल फुलाकर बैठ गया । उस समय बारिश हो रही थी और सारे टीचर्स मुझे अन्दर बुला –बुला कर हार मान चुके थे,  लेकिन मै वही बारिश में भीगते हुए अकेले बैठा रहा । जिसके बाद स्कूल  स्टाफ में से कुछ  ने जबरदस्ती पकड़ कर मुझे अन्दर ले जाने का प्रयास भी किया, लेकिन मै वही चिल्लाते –बिलखते हुए जमीन में लोटने लगा और उनके हाथो को गुस्से से काट भी दिया । जिससे अंत में हार मानकर उन्होंने मेरी माँ को बुलाया । जो आई तो छाता लेकर थी पर मुझे बारिश में अकेले भीगता देख छाता वही एक किनारे रखकर  मेरे साथ भीगते हुए  पार्क के उस बेंच पर  बैठ गयी ।

 

“Aksh , तुम यहाँ बारिश के बाद दिखने वाले इन्द्रधनुष का इन्तजार कर रहे हो क्या...?”मुस्कुराते हुए मेरी माँ मुझसे कहा

“मैंने होमवर्क नहीं किया और इसीलिए मुझे यहाँ बारिश में भीगने की सजा दी गयी है”साफ़ झूठ बोलते हुए गाल फुलाकर मैंने अपना चेहरा दूसरी तरफ कर लिया

“स्कूल वालो ने सजा दी है या फिर तुमने खुद ने ...?? जो तुम्हारे डैड ने हमारे साथ किया...??”

शुरू में तो मैंने कोई जवाब नहीं दिया और ऐसे ही बिना कुछ बोले गुपगुपाया हुआ बैठा रहा पर थोड़ी देर बाद जब मुझसे रहा नहीं गया , जब मै और कठोर नहीं रह पाया तो लम्बी –लम्बी साँसे भरते हुए अपनी माँ की तरफ पलटा.

“मै इतना कमजोर और अलग क्यूँ हूँ ... Mommy ”

“नहीं Aksh... कमजोर और तुम ..?? बिलकुल नहीं...”मुझे अपने सीने से चिपकाते हुए मेरी माँ बोली “ किसने कहा तुम कमजोर हो..? तुम बिलकुल भी कमजोर नहीं हो और यदि अगली बार कोई  तुम्हे  कमजोर कहे तो उन्हें तुम अपने ये शक्तिशाली मसल दिखा देना .”

“पर मै दुसरो से इतना अलग क्यूँ हूँ ... Mommy “

“क्यूंकि तुम स्पेशल हो और स्पेशल लोग अक्सर आम लोगो  से अलग ही होते है”

“I ।ove you, Mommy....”

“I ।ove you too, Aksh....”

 

मेरी माँ, मेरे सपनो की दुनिया के अंधकार को दूर करने वाली रोशनी थी । जिनका दामन थाम कर मै बड़ा हुआ । उनके आँचल ने ठण्ड लगने पर मुझे  ऊष्मा प्रदान की  और जब मै खुद से या किसी बात से गुस्सा हुआ तो उनके उसी आँचल ने मुझे शीतलता दी । मेरी माँ को एक मॉल में नौकरी मिली, पर ये हमारे दो कमरों  के रूम का  रेंट और मेरी पढाई का खर्च उठाने के लिए पर्याप्त नहीं था, इसलिए उन्होंने मॉल की नौकरी करने के बाद बच्चो के पार्क में तरह –तरह के जानवरों के ड्रेस पहन कर चंद डॉलर के लिए लोगो का मनोरंजन भी किया, जहा जिनका मन करता वो मूड होने पर या तो अपशब्द कहते या फिर मजाक –मजाक में कोई चीज फेक कर मार देते और जिन्हें पता चल जाता की जानवर के गेटअप में एक महिला है तो वो अभद्र हरकते करने से भी पीछे नहीं हटते थे । इधर  मेरी जिंदगी में सिवाय पढाई के कोई और काम नहीं था, मैंने खुद को पूरी तरह इसमें झोक दिया  और जब स्कूल को रेप्रेसेंट करते हुए मैंने कई स्टेट और नेशनल लेवल कम्पटीशन में स्कूल को जीत दिलायी तो मुझे स्कालरशिप मिली , जहा से मेरी राह  थोड़ी आसान हो गई । फिर वो दिन भी आया जब मेरी माँ स्टैनफोर्ड सेन्टर में अपनी आखिरी साँसे ले रही थी ।

 

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